Sunday, May 2, 2010

रात है अँधेरी...!!

रात है अँधेरी, घनघोर अंधियारी,
पर दिया जलाने से किसने रोका है |

किसी और के भरोसे क्यों बैठे हो,
अपने लिए तो राह खुद ही ढूंढनी पड़ेगी,
अन्धविश्वास किसी पर भी, एक धोखा है |

यदी आपके काम न ए वो उजाले,
फिर भी जलाते रहो दिए,
कहाँ सबको मिलता परोपकार का मौका है |

रात है अँधेरी, घनघोर अंधियारी,
पर दिया जलाने से किसने रोका है |