अहले खुशफहमी का जब से बंद दरवाजा हुआ,
अपनी बिसरी कद्र का तब भी नहीं अंदाजा हुआ |
भूलना चाहा उन हादसों को कई कई बार,
पर हर बहाने से वही लम्हा कई बार ताजा हुआ |
नैनों में सिमटे हुए पानी को हम कुछ भी न समझते थे,
आज जब उसी सैलाब में जा डूबे तभी अंदाजा हुआ |
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