Tuesday, June 26, 2018

चलते चलते..!!

कहाँ से निकलता चला था और चलते हुए कहाँ आ गया हूँ,
जर्रा सा खोया और जाने क्या क्या पाता गया हूँ,
खोने का गम नहीं पर पाने का एहसास भुलाता सा चला गया हूँ !

सब से बहुत सा सीखा और शायद सबको जरा सा सिखा गया हूँ,
अपने होने के एहसास को हे कृष्णा, सबको जताता गया हूँ !

जिस वक्त ने आजकल जो चुप्पी साध रखी है,
अब तो वह भी यही बोलेगा मुझ से मिल के,
क्या बनाना था इसको और क्या बना गया हूँ !!