रात है अँधेरी, घनघोर अंधियारी,
पर दिया जलाने से किसने रोका है |
किसी और के भरोसे क्यों बैठे हो,
अपने लिए तो राह खुद ही ढूंढनी पड़ेगी,
अन्धविश्वास किसी पर भी, एक धोखा है |
यदी आपके काम न ए वो उजाले,
फिर भी जलाते रहो दिए,
कहाँ सबको मिलता परोपकार का मौका है |
रात है अँधेरी, घनघोर अंधियारी,
पर दिया जलाने से किसने रोका है |
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