रातें कई आती और जाती हैं,
कई जिंदगियां इसमें ही गुजर जाती हैं,
हर सुबह एक नयी उम्मीद ले कर आती है,
वही उम्मीद, फिर शाम तक थक कर,
रातों को ग़मगीन बना जाती है,
कभी कभी यूं ही सोचता हूँ,
कोई रात का इन्तजार क्योँ करता है,
उजालों में अब क्या नहीं होता है ?
सही कहा आपने,
ReplyDeleteकोई रात का इन्तजार क्योँ करता है,
उजालों में अब क्या नहीं होता है ?
http://sudhirraghav.blogspot.com/
बहुत गहरे!
ReplyDeleteBhau, never knew u r so deep...awesome...ur blog added to my favourites...
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