Monday, August 23, 2010

रातें....!!

रातें कई आती और जाती हैं,
कई जिंदगियां इसमें ही गुजर जाती हैं,

हर सुबह एक नयी उम्मीद ले कर आती है,
वही उम्मीद, फिर शाम तक थक कर,
रातों को ग़मगीन बना जाती है,

कभी कभी यूं ही सोचता हूँ,
कोई रात का इन्तजार क्योँ करता है,
उजालों में अब क्या नहीं होता है ?

3 comments:

  1. सही कहा आपने,
    कोई रात का इन्तजार क्योँ करता है,
    उजालों में अब क्या नहीं होता है ?

    http://sudhirraghav.blogspot.com/

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  2. Bhau, never knew u r so deep...awesome...ur blog added to my favourites...

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